पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१०

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अनुध्यान और अभिलाषा की संपत्ति पास है उस समय तक- हा चे: दर मब्द:-ए-फैयाज बुवद आन-ए-मनस्त गुल जुदा नाशुद: अज शाख बदामान-ए-मनस्त (जो कुछ उढार सृष्टि के पास है मेरा है। डाल से न टूटा हुआ फूल मेरी गोद मे है) इसलिए गालिब की शा अिरी में संसार, आनंद और इच्छा के त्याग के विषय कदाचित ही मिलेगे जो परंपरागत रूप से चले आये है किन्तु गालिब के अपने स्वभाव का अंश नही है। गालिब की अभिरुचि रस और आनंद की प्राप्ति में सीमाओ का बंधन नहीं मानती। वह सौन्दर्य को इस प्रकार आत्मसात कर लेना चाहता है कि निगाहो को भी अपने और माशूक के बीच बाधा समझता है (४२-५) इस स्थिति में स्पष्ट ही निगाह की सफलता भी उसे शाति प्रदान नही कर सकती और वह अपने अतृप्त हृदय की शाति के लिए तड़पता रह जाता है (१५३-६)। जब पीने पर आता है तो घड़े को प्याला बना लेना चाहता है (१३४-२) और जब गुनाहो पर आता है तो गुनाहो का सागर पानी की कमी से सूख जाता है ( ३६-६)। गालिब की आनंद-तृष्णा का अति सुन्दर उदाहरण उर्दू की प्रसिद्ध ग़जल "मुद्दत हुई है यार को मेहमा किये हुए" (२३४ ) और फ़ारसी की ग़जल में मिलता है जहाँ वह अमूल्य मधुपात्र की गर्दिश से मृत्यु और मान्यताओ को भी बदल देना चाहता है। वह स्वच्छंद साहस के साथ अनुद्देश्य लालसा को भी आवश्यक समझता है (१८६-२) और एक अत्यंत मृदुल "लोलुपता' की मंजिल में पहुंच जाता है। शायद यह बात जवानी की बेराहरवी ने सिखलादी थी कि आवारगी में अपमान तो होता है लेकिन तबीअत सान पर चढ़ जाती है (२११-३)। गालिब की आवारगी और लोलुपता के गवाह उसके दिलचस्प पैमाने ( मापदण्ड ) है। रोने का पैमाना वह गुनाह जो किये नहीं गये (२३१-१०) थकन का पैमाना पूरे बयाबान का विस्तार भी नही (११) क्योकि जब बयाबान के बयाबान थकन से भर जाते है तो अभिरुचि की गति की लहरो पर पदचिन्ह बुलबुलो की तरह बहने लगते है और उसकी शान्ति के लिये दोजहान भी काफी नहीं है (१०३)। सारा सम्भावनाजगत कामना का केवल एक कदम मालूम होता है (जमीमः १२)। गालिब का काव्य दूसरे कदम की खोज है और यह खोज एक अविराम दुख, तड़प, जलन, कसक और गति में परिवर्तित हो गई है। “शौक-ए-भिनॉ गुसेख्तः दरिया कहे जिसे” (२३०-५) __“शौक" गालिब का अत्यंत प्रिय शब्द है और इस परिवार के अन्य शब्द तमन्ना, अारज और ख्वाहिश से उसकी कविता छलक रही है। जुनून