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दिल लगाकर लग गया उनको भी तन्हा बैठना
बारे, अपनी बेकसी की हमने पाई दाद, याँ
हैं जवाल आमादः अज्ज़ा आफ़रीनिश के तमाम
मेह्र-ए-गंर्दू है चरारा-ए-रह्गुज़ार-ए-बाद, याँ
१०७
यह हम जो हिज्र में, दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को, कभी नामःबर को देखते हैं
वह आयें घर में हमारे, ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं
नज़र लगे न कहीं, उसके दस्त-ओ-बाजू को
यह लोग क्यों मिरे जख़्म-ए-जिगर को देखते हैं
तिरे जवाहिर-ए-तर्फ़-ए-कुलह को क्या देखें
हम औजे ताले-ए-लाल-ओ-गुहर को देखते हैं