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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१११

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तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
हम भी मज़मूँ की हवा बाँधते हैं

आह का किसने असर देखा है
हम भी इक अपनी हवा बाँधते हैं

तेरी फ़ुर्सत के मुक़ाबिल, अय ‘अुम्र
बर्क़ को पा ब हिना बाँधते हैं

कै़द-ए-हस्ती से रिहाई, मा‘लूम
अश्क को बे सर-यो-पा बाँधते हैं

नश्शः-ए-रंग से, है वाशुद-ए-गुल
मस्त कब बन्द-ए-क़िबा बाँधते हैं

ग़लतीहा-ए-मज़ामीं मत पूछ
लोग नाले को रसा बाँधते हैं

अह्ल-ए-तद्बीर की वामान्दगियाँ
आबलों पर भी हिना बाँधते हैं

सादः पुरकार हैं ख़ूबाँ, ग़ालिब
हम से पैमान-ए-वफ़ा बाँधते हैं