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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१३

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(जमीमः २१) और उस अरचित उद्यान को केवल निजी इच्छा का उद्यान समझ लेना, ग़ालिब का अपमान है। इसमें सामाजिक संभावनाओ की कल्पना इसलिए सम्मिलित है कि ग़ालिब के पास सामाजिक प्रगति का एक उत्तम विचार मौजूद था और निर्माण की अभिलाषा उसके दिल का सबसे बड़ा दर्द (१३६)। ग़ज़ल के किसी शे'र के संबंध में यह कहना कि उसका वास्तविक प्रेरक क्या था, कठिन है क्योंकि उसपर रूपकों के आवरण पड़े होते हैं (६०–६, ७)। लेकिन ग़ालिब ने अपने पत्रों में ग़दर [१८५७] की तबाही के बाद देहली के जो हृदय विदारक मर्सिये लिखे हैं उन्हीमें एक जगह यह हसरत-ए-तामीर [निर्माण की अभिलाषा] का शे'र भी लिखा हुआ नज़र आता है—"दिल्ली का हाल तो यह है—

घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-ता'मीर सो है"[१३६]

इन छः शब्दों और दो पंक्तियों के पीछे ग़ालिब के विचारों की एक दुनिया आबाद है जो ग़ालिब के पत्रों में देखी जा सकती है। १८५७ से बहुत पहले ग़ालिब ने यह अनुमान कर लिया था कि मुग़ल संस्कृति और समाज का दीप अब सदा के लिए बुझनेवाला है। यद्यपि इसकी प्राचीन मान्यताएँ ग़ालिब को बहुत प्रिय थीं लेकिन उसे यह भी ज्ञात था कि इमारत बेबुनियाद हो चुकी है और जड़े खोखली हैं। हवा का कोई भी झोंका उसे गिरा सकता है। ग़ालिब के निजी हालात भी इससे मिलते जुलते थे। जो सोग घर में था वही आगरे और देहली पर छाया था और दोनों ने मिलकर ग़ालिब को युवावस्था के आरंभ ही से उदास कर दिया था।

लेकिन इसीके साथ ग़ालिब ने उस नयी दुनिया की झलक देख ली थी जो विज्ञान और उद्योग की प्रगति के साथ आ रही थी वह अंग्रेजी पूँजीवाद की शोषण-शक्ति का अनुमान न लगा सका (और यदि लगाया हो तो उसका सुबूत नहीं मिलता) लेकिन अंग्रेज़ों के लाये हुए विज्ञान और उद्योग ने उसे इतना प्रभावित किया कि जब ग़दर से कई वर्ष पहले सर सैयद अहमद खाँ ने अबुल फ़ज्ल की "आईन-ए-अकबरी" का परिशोधन किया और ग़ालिब से उसकी समीक्षा लिखने की इच्छा प्रकट की तो ग़ालिब ने ग़ज़ल के रूपकों के सारे आवरण अलग रखकर स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि आँखें खोल कर साहिबान-ए-इंग्लिस्तान को देखो कि ये अपने कला-कौशल में अगलों से आगे बढ़ गये हैं। उन्होंने हवा और लहरों को बेकार करके आग और धुएँ की शक्ति से अपनी नावें सागर में तैरा दी है। यह बिना मिज़राब के सँगीत उत्पन्न कर रहे है और उनके जादू से शब्द चिड़ियो की तरह उड़ते है, हवा में आग लग जाती है और फिर बिना दीप के नगर आलोकित हो जाते है।