पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निस्यः-ओ-ननद-ए-दो 'पालम की हक़ीक़त मालूम ले लिया मुझ से, मिरी हिम्मत-ए-'पाली ने मुझे कस्रत आराइ-ए-वहदत, है परस्तारि-ए-वम कर दिया काफ़िर, इन असनाम-ए-ख़याली ने मुझे हवस-ए-गुल का तसव्वुर में भी खटका न रहा 'अजब पाराम दिया, बेपर-नो-बाली ने मुझे १५६ कारगाह-ए-हस्ती में, लालः दारा सामाँ है बर्क-ए-खरमन-ए-राहत, खून-ए-गर्म-ए-देता है सुचः ता शिगुफ़्तनहा, बर्ग-ए-'ग्राफ़ियत मालूम बावुजूद-ए-दिलजम श्री, ख़्वाब-ए-गुल परीशाँ है हम से रंज-ए-बेताबी किस तरह उठाया जाय दारा पुश्त-ए-दस्त-ए-'अिज्ज , शोलः ख़स ब दन्दाँ है उग रहा है दर -ो-दीवार से सब्जः, गालिब हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है