पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१५९

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रग-ए-लैला को ख़ाक-ए-दश्त-ए-मजनूँ, रेशगी बख़्शे अगर बोदे बजाये दानः देहनाँ, नोक नश्तर की पर-ए-परवानः, शायद बादबान-ए-कश्ति-ए-मै था हुई मज्लिस की गर्मी से रवानी दौर-ए-सागर की करूँ बेदाद-ए-ज़ौक़-ए - परफ़िशानी 'अर्ज, क्या क़ुदरत कि ताक़त उड़ गई, उड़ने से पहले, मेरे शहपर की कहाँ तक रोऊँ उसके खेमे के पीछे, क़यामत है मिरी किस्मत में, यारब, क्या न थी दीवार पत्थर की बे एतिदालियों से, सुबुक सब में हम हुये जितने ज़ियादः हो गये, उतने ही कम हुये पिन्हाँ था दाम-ए- सख़्त, क़रीब आशियान के उड़ने न पाये थे, कि गिरफ्तार हम हुये हस्ती हमारी, अपनी फ़ना पर दलील है याँ तक मिटे, कि आप हम अपनी क़सम हुये । सख्ती कशान-ए-अिश्क की, पूछे है क्या ख़बर वह लोग रफ़्तः रफ़्तः सरापा अलम हुये