पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१६२

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देखो मुझे, जो दीदः-ए-'प्रिव्रत निगाह हो मेरी सुनो, जो गोश-ए-नसीहत नियोश है साक़ी, ब जलवः दुश्मन-ए-ईमान-यो-पागही मुतरिब, ब नरमः, रहजन-ए-तम्कीन-यो-होश है या शब को देखते थे, कि हर गोशः-ए-बिसात दामान-ए-बाग़बान-श्रो-कफ़-ए-गुलफरोश है लुत्फ-ए-ख़िराम ए-साक़ि-ग्रो-जौक़-ए-सदा-ए-चग यह जन्नत-ए-निगाह, वह फ़िौस-ए-गोश है या सुब्ह दम जो देखिये आकर, तो बड़म में ने वह सुरू-ो-सोज, न जोश-ओ-खरोश है दारा-ए-फ़िराक-ए-सोह्बत-ए-शब की जली हुई इक शम्अ रह गई है, सो वह भी खमोश है अाते हैं रौब से, यह मजामों खयाल में ग़ालिब, सरीर- ए - खामः नवा-ए-सरोश है १७१ श्रा, कि मिरी जान को क़रार नहीं है ताक़त-ए-बेदाद-ए-इन्तिजार नहीं है