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देखो मुझे, जो दीदः-ए-'अव्रत निगाह हो
मेरी सुनो, जो गोश-ए-नसीहत नियोश है
साक़ी, ब जलवः दुश्मन-ए-ईमान-ओ-आगही
मुतरिब,ब नग़्मः,रहज़न-ए-तम्कीन-ओ-होश है
या शब को देखते थे, कि हर गोशः-ए-बिसात
दामान-ए-बाग़बान-ओ-कफ़-ए-गुलफरोश है
लुत्फ-ए-ख़िराम ए-साक़ि-ओ-ज़ौक़-ए-सदा-ए-चँग
यह जन्नत-ए-निगाह, वह फ़िर्दोस-ए-गोश है
या सुब्ह दम जो देखिये आकर, तो बज़्म में
ने वह सुरू-ओ-सोज़, न जोश-ओ-ख़रोश है
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोह्बत-ए-शब की जली हुई
इक शम्'अ रह गई है, सो वह भी खमोश है
आते हैं ग़ैब से, यह मज़ामीं खयाल में
ग़ालिब, सरीर-ए-खामः नवा-ए-सरोश है
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आ, कि मिरी जान को क़रार नहीं है
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इन्तिजार नहीं है