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हुस्न-ए-मह, गरचे: ब हँगाम-ए-कमाल, अच्छा है
उससे मेरा मह - ए - ख़ुर्शीद जमाल अच्छा है

बोलः देते नहीं, और दिल प है हर लह्ज़ः निगाह
जी में कहते हैं, कि मुफ़्त आये, तो माल अच्छा है

और बाज़ार से ले आये, अगर टूट गया
साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है

बेतलब दें तो मज़ा उसमें सिवा मिलता है
वह गदा, जिसको न हो ख़ू-ए-सवाल, अच्छा है

उनके देखे से, जो आजाती है मुँह पर रौनक
वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

देखिये, पाते हैं ‘अश्शाक़, बुतों से क्या फ़ैज़
इक ब्रह्मन ने कहा है, कि यह साल अच्छा है

हम सुख़न तेशे ने फ़रहाद को, शीरीं से किया
जिस तरह का कि किसी में हो कमाल, अच्छा है

क़तरः दरिया में जो मिल जाय, तो दरिया हो जाय
काम अच्छा है वह, जिसका कि नआल अच्छा है