पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१७

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सताप के सामने उसका सर झुका न जग-संताप के। मजनूं हो या फरहाढ, खिज्र हो या सिकन्दर, जमाना हो या खूबान-ए-दिल आजार [ दुख देनेवाला मा'शूक ] कोई गालिब की ऑखो में नहीं समाता। वह खुढा की बन्दगी में भी मनमौजी और अभिमानी रहा | २३-२7 और बेवफाओ के 'अिश्क में भी [ १२७-४] उसका सबसे अधिक सुन्दर विवरण इस ग़जल में है- " बाजीच: - ए- अत्काल है दुनिया मिरे आगे" [२०६] यह शान कसीदो में भी बाकी है, यद्यपि यह गालिब की शाभिरी और जीवन का कमजोर पहलू है। लेकिन यह स्वीकार न करना जुल्म होगा कि मजबूर होकर उसने अपना हाथ जरूर फैलाया मगर इसको सदा जलील पेशा समझता रहा, और एक जगह अफ़सोस किया है कि आधी शामिरी अपात्रो की प्रशंसा में व्यर्थ होगई। यही कारण है कि क़सीदो का प्रशंसात्मक अंश कमजोर है और तशबीब [आरंभिक भाग अत्यंत काव्यमय । गालिब को इसका एहसास था कि जिसकी प्रशंसा कर रहा हूँ उससे मेरा दर्जा ऊँचा है इसलिए उसने कही कहीं स्वयं अपनी प्रशंसा का पहलू निकाल लिया है। गालिब का अंतिम आश्रयस्थल उसका अनुध्यान और कल्पना है क्योंकि " निर्धनो के जीवन का आधार कल्पना पर है" ( एक खत )। इस जगत में पहुँचकर वह विश्व पर राज्य करने लगता है और जीवन के हर अभाव की पूर्ति कर लेता है। यह स्वप्नो का संसार है और यहाँ स्वप्नो का निर्माण करनेवाले के अतिरिक्त किसी का शासन नही चलता। यहाँ बादशाह अजगर मालूम होने लगते है और शा अिर पैग़म्बर हो जाता है और जिबईल (खुदा का संदेश लेकर आनेवाला फ़रिश्ता) “नाकः-ए-शौक का हुदीख्वान" (अपने गीत से शौक को आगे बढ़ानेवाला)। यहाँ निर्दयता नहीं है केवल करुणा है। अपूर्ण कामनाएँ नही है केवल कामनापूर्ति का हर्ष है, कदहसाजी ( प्याले बनाना) और साक्रीतराशी [ साकी गढ़ना] है। प्यास जितनी बढ़ती है सागर का उबाल भी उतना ही बढ़ता है। बुरे हालात में जीने का हौसला जाग उठता है और जिगर का खून पीकर चेहरे की ताजगी बढ़ जाती है (अब्र-ए-गुहरबार)। अनुध्यान अरचित उद्यानो से कुसुमचयन करता है और बहारो के गीत गाता है। इस दुनिया मे केवल गति और उड़ान है और आगे बढ़े जाने का मस्ताना अमल, “ता बाजगश्त से न रहे मुद्दा मुझे" (१५०-३)। गालिब की ये सारी विशेषताएँ मिलकर उसके प्रेम के दृष्टिकोण को ऐसा रूप देती है जिससे पहले उर्दू शाबिरी अपरिचित थी। सौन्दर्य के असीम आकर्षण के सामने, जिसमें अफ़लातूनियत कम है और जिस्मानियत (शारीरिकता) अधिक, अत्यधिक समर्पण और श्रद्धा के बावजूद गालिब का