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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१९९

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लख्त-ए-जिगर से है रग-ए-हर ख़ार, शाख़-ए-गुल
ता चन्द बाग़बानि-ए-सहरा करे कोई

नाकामि-ए-निगाह है बर्क़-ए-नजारः सोज़
तू वह नहीं, कि तुझको तमाशा करे कोई

हर सँग-ओ-ख़िश्त है सदफ़-ए-गौहर-ए-शिकस्त
नुक़साँ नहीं, जुनूँ से जो सौदा करे कोई

सरबर हुई न वा'दः-ए-सब्र आज़मा से 'अम्र
फुर्सत कहाँ, कि तेरी तमन्ना करे कोई

है वह्शत-ए-तबी'अत-ए-ईजाद यास खे़ज़
यह दर्द वह नहीं, कि न पैदा करे कोई

बेकारि-ए-जुनूँ को है सर पीटने का शग़्ल
जब हाथ टूट जायें, तो फिर क्या करे कोई

हुस्न-ए-फ़रोग़-ए-शम्'-ए-सुख़न दूर है, असद
पहले दिल-ए-गुदाख्ता पैदा करे कोई

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इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई