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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१९८

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२१४

हुस्न-ए-बेपरवा खरीदार-ए-मता'-ए-जल्वः है
आइनः ज़ानु-ए-फ़िक्र-ए-इख़्तिरा'-ए-जल्वः है

ता कुजा, अय आगही, रँग-ए-तमाशा बाख़्तन
चश्म-ए-बा गर्दीदः आग़ोश-ए-विदा'-ए-जल्वः है

२१५



जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
मुश्किल, कि तुझसे राह-ए-सुख़न वा करे कोई

'आलम ग़ुबार-ए-वहशत-ए-मजनूँ है सरबस
कब तक खयाल-ए-तुर्रः-ए-लैला करे कोई

अफसुर्दगी नहीं तरब इंशा-ए-इल्तिफ़ात
हाँ, दर्द बन के दिल में मगर जा करे कोई

रोने से, अय नदीम, मलामत न कर मुझे
आख़िर कभी तो, 'कदः-ए-दिल वा करे कोई

चाक-ए-जिगर से, जब रह-ए-पुरसिश न वा हुई
क्या फ़ायदः, कि जैब को रुस्वा करे कोई