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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०

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पहुँचने का पथ मिलेगा। और उल्लासजनित मत्तता की वह अवस्था प्राप्त होगी जहाँ वफ़ा (प्रेम-निर्वाह) का शब्द मा'शूक की ज़ुल्फों (अलकों) की तरह सुरभित हो उठेगा और सर्व-ए-चराग़ों (दीप-सज्जित वृक्ष) नृत्य करता नजर आयेगा 'अिश्क (प्रेम) अभिरुचि और आचारण बन जायगा, प्रेयसी का सौन्दर्य सृष्टि के सौन्दर्य में परिणत हो जायगा, नाज़ (रूप-गर्व) वह आदर्श बन जायगा जिसकी प्राप्ति के लिए तन-मन की बाजी लगाना सुरुचि का परिचायक है, शमशीर-ओ-सिनाँ (तलवार और बर्छी) का तेज और अंदाज-ओ-अदा (हाव-भाव) की सुन्दरता प्रकट होगी, फ़िराक (विरह) का दर्द कामना की मृदुलता में परिणत हो जायगा और विसाल (मिलन) तृष्णा के आनंद की परितृप्ति में; शौक (आकांक्षा) एक निमणि-शक्ति बनकर उभरेगा और दश्त-ओ-सहरा (मैदान और जंगल) संभावनाओं का विस्तार धारण कर लेंगे, जुनून (उन्माद) जिज्ञासा बन जायगा जिसकी राहें कभी जिन्दाँ (कारागार) की जंजीरे रोकेंगी और कभी दैर-ओ-हरम (मन्दिर और मस्जिद) की दीवारें, जिन्होंने अपने अन्दर लालसा की थकन को सजा रखा है; (जमीमः २०–२) और मैख़ानः (मदिरालय) पूर्ण मानवता और पूर्ण स्वतंत्रता की मंज़िल बनकर सामने आयगा। फिर दीवान-ए-ग़ालिब के हर पृष्ठ पर उसकी कल्पना की सृष्टि अँगड़ाइयाँ लेने लगेगी, उसके सरापा नाज़ महबूब आँखो के सामने मुस्कुरायेंगे और दुनिया ज्यादा खूबसूरत हो जायगी और मानव अधिक आदरणीय।

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प्रचलित दीवान-ए-ग़ालिब वास्तव में ग़ालिब के उर्दू काव्य का संग्रह हैं जिसके कई संस्करण ग़ालिब के जीवनकाल में प्रकाशित हुए। मैंने इस संस्करण के लिए श्री मालिक राम द्वारा सम्पादित दीवान का उपयोग किया है जिसका मूल मतबः-ए-निज़ामी कानपुर के संस्करण (१८६२ ई॰) पर आधारित है। और इसका संशोधन स्वयं ग़ालिब ने किया था।

मैंने केवल ग़ज़ले मूल-क्रम के साथ बाकी रखी हैं और ज़मीमे (परिशिष्ट) में भी दो कत'ओ के 'अलावः बाकी अश'आर ग़ज़लो के ही है।

'आम तौर से उर्दू लिखावट में विरामचिन्हों और मात्राओं का रिवाज नहीं है। और 'अिबारत अटकल से पढ़ी जाती है इसलिए दीवान-ए-ग़ालिब के विभिन्न संस्करणों में कुछ इजाफ़तों में विरोध मिलता है, जो या तो दीवान सम्पादित करनेवालो ने जल्दी में लिखदी है या कातिब ने सजावट के लिए लगादी है। मालिक राम ने विरामचिन्हों के मु'आमले में बड़े परिश्रम और सावधानी से काम लिया है लेकिन ऐ'राब लगाने में उन्होने भी इतनी सावधानी नहीं बरती। मैंने विरामचिन्ह ज्यों के त्यों रखे हैं लेकिन कुछ इज़ाफ़तों