पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०१

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२१७ बहुत सही ग़म-ए-गेती, शराब कम क्या है गुलाम-ए-साक़ि-ए-कौसर हूँ, मुझको राम क्या है तुम्हारी तर्ज-ओ-रविश, जानते हैं हम, क्या है रक़ीब पर है अगर लुत्फ़, तो सितम क्या है सुख़न में ख़ामः-ए-ग़ालिब की आतश अफ़शानी यक़ी है हमको भी, लेकिन अब उसमें दम क्या है २१८ बारा पाकर ख़फ़क़ानी, यह डराता है मुझे सायः-ए-शाख़-ए-गुल, अफ़'श्री नजर आता है मुझे जौहर-ए-तेग़ बसर चश्म:-ए-दीगर मालूम हूँ मैं वह सब्जः, कि जहराब उगाता है मुझे मुद्दा मह्व-ए-तमाशा-ए-शिकस्त-ए-दिल है आइनःखाने में कोई लिये जाता है मुझे नालः सरमायः-ए-यक आलम-श्रो-'पालम कफ़-ए-खाक प्रास्माँ बैजः-ए-कुम्री नजर आता है मुझे