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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२२६

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२३

असद, बज़्म-ए-तमाशा में, तग़ाफ़ुल पर्दःदारी है
अगर ढाँपे, तो आँखें ढाँप, हम तस्वीर-ए-'अरियाँ हैं

२४



फ़ुताद्गी में क़दम उस्तुवार रखते हैं
बरँग-ए-जादः सर-ए-कू-ए-यार रखते हैं

जुनून-ए-फ़ुर्क़त-ए-यारान-ए-रफ़्तः है, ग़ालिब
बसान-ए-दश्त दिल-ए-पुर ग़ुबार रखते हैं

२५



है तिलिस्म-ए-दैर में, सद हश्र-ए-पादाश-ए-'अमल
आगही ग़ाफ़िल, कि यक इम्रोज बे फर्दा नहीं

२६



मुझे मा'लूम है, जो तूने मेरे हक़ में सोचा है
कहीं हो जाये जल्द, अय गर्दिश-ए-गर्दून-ए-दूँ वह भी