पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२२५

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असद' शिकवः कुफ्र-ओ-दु'श्रा ना सिपासी हुजूम-ए-तमन्ना से लाचार हैं हम फिर हल्क:-ए-काकुल में पड़ी दीद की राहें ज्यों दूद फ़राहम हुई रौजन में निगाहें दैर-ओ-हरम, आईन:-ए-तकरार-ए-तमन्ना वामान्दगि - ए - शेक तराशे है पनाहें २१ हूँ गर्मि-ए-नशात-ए-तसव्वुर से नरमः सँज मैं 'अन्दलीब-ए-गुल्शन-ए-ना आफरीदः हूँ अय नवासाज-ए-तमाशा, सर ब कफ़ जलता हूँ मैं इक तरफ़ जलता है दिल, और इक तरफ़ जलता हूँ मैं है तमाशा गाह-ए-सोज-ए-ताजः, हर यक 'अज्व-ए-तन ज्यों चरागान-ए-दिवाली सफ़ ब सफ़ जलता हूँ