पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२३०

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है जौक़-ए-गिरियः, 'अज़्म-ए-सफ़र कीजिये, असद रख़्त-ए-जुनून-ए- सैल ब वीरानः खेचिये खुद नामः बन के जाइये, उस प्राश्ना के पास क्या फायदः कि मिन्नत-ए-बेगानः खेचिये जाम - ए-हर जर्रः, है सार-ए-तमन्ना मुझसे किसका दिल हूँ, कि दो 'अालम से लगाया है मुझे गदा-ए-ताक़त-ए-तकरीर है ज़बाँ तुझ से कि ख़ामुशी को है पैराय :-ए-बयाँ तुझ से फ़सुर्दगी में है फ़रियाद-ए-बेदिलाँ तुझ से चराग़ः-ए-सुबह-श्रो-गुल-ए-मौसम-ए-ख़ज़ाँ तुझ से बहार-ए-हैरत-ए- नज्जारः, सस्त जानी से हिना-ए-पा-ए-अजल खून- ए - कुश्तगाँ तुझसे