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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२४

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अन्त में उन सब मित्रों के प्रति आभार प्रकट करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष होता है जिनके सहयोग से दीवान-ए-ग़ालिब का प्रस्तुत संस्करण प्रकाशित हुआ है। सबसे पहिले मैं लाला योधराज का आभारी हूँ जिनकी उदारता और विशाल हृदयता से हिन्दुस्तानी बुक ट्रस्ट अस्तित्व में आया। दीवान-ए-ग़ालिब इस ट्रस्ट का प्रथम ग्रन्थ है। मीर, इकबाल और उर्दू के दूसरे महान कवियो के संकलन भविष्य में प्रकाशित होंगे। मेरे आदरणीय मित्र श्री शहाबुद्दीन देस्‍नवी ने अपनी अत्यन्त व्यस्तता के बावजूद हिन्दुस्तानी बुक ट्रस्ट के स्थापन और दीवान के मुद्रण में जिस तरह प्रयत्‍न किया है और अपना बहुमूल्य समय दिया है उसकी प्रशंसा के लिये शब्द नाकाफी हैं। श्री वी. शंकर के कीमती मशवरों के साथ-साथ जो काम करनेवालों के मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन का कारण हुए, डाक्टर मुल्कराज आनन्द और उनकी सहयोगिनी मिस सैयार के परामर्श से दीवान-ए-ग़ालिब का हर पृष्ठ सुसज्जित है और इसका यह सुन्दर और मनोहर रूप उन्ही के प्रयत्‍नों का नतीजः है। मैं श्री मालिक राम का भी आभारी हूँ, जिन्होने अपने सम्पादित दीवान-ए-ग़ालिब का उपयोग करने की अनुमति देकर मेरे काम को बहुत आसान बना दिया। श्री मुग़नी अमरोहवी ने ग़ज़लों को देवनागरी में लिपिबद्ध किया और हर पृष्ठ का संशोधन किया और श्री प्रेम स्वरूप शर्मा ने शब्दावली सम्पादित करने में मेरा हाथ बटाया। इन दोनों मित्रों के सहयोग के बिना इस कर्तव्य से भारमुक्त होना मेरे लिये असम्भव था।

अदबी प्रिंटिंग प्रेस के सभी कार्यकर्ता विशेष रूप से मेरे धन्यवाद के अधिकारी हैं। उन्होंने दिन रात एक करके दीवान-ए-ग़ालिब इतनी स्वच्छता के साथ छापा है और अपने और अपने प्रेस के लिए दिलों के अन्दर जगह पैदा करली है।

खुदा करे इस दीवान के प्रकाशन से हिन्दी वालों और उर्दू वालों के दिलों में प्रेम के नये पुष्प खिलें और हमारा देश और हमारी भाषा उन की सुगंध से महक उठे।

बम्बई

सरदार जा'फ़री

जुलाई १९५८