पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२७

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आगही, दाम-ए-शनीदन, जिस क़दर चाहे, बिछाये मुद्दा 'अंका है, अपने 'पालम-ए-तकरीर का बसकि हूँ, गालिब, असीरी में भी आतश जेर-ए-पा मू-ए-आतश दीदः, है हल्क: मिरी जंजीर का जराहत तोहफ़ः, अल्मास अMगाँ, दारा-ए-जिगर हदियः मुबारकबाद असद, रामख़्वार-ए-जान-ए-दर्दमन्द आया जुज कैस और कोई न आया, ब रू-ए-कार सहा, मगर, ब तँगि-ए-चश्म-ए-हुसूद था आशुफ़्तगी ने नक्श-ए-सुवैदा किया दुरुस्त जाहिर हुआ, कि दारा का सरमायः दूद था था ख्वाब में, ख़याल को तुझसे मुआमलः जब आँख खुल गई, न जियाँ था न सूद था लेता हूँ मक्तब-ए-राम-ए-दिल में सबक हनोज लेकिन यही कि, रफ़्त गया, और बूद था