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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२८

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ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए-'अुयूब-ए-बरह्‍नगी
मैं, वर्नः हर लिबास में नँग-ए-वुजूद था
तेशे बिग़ैर मर न सका कोहकन, असद
सर‍्गश्तः-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था


कहते हो, न देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया
दिल कहाँ, कि गुम कीजे, हमने मुद्द'आ पाया
'अिश्क़ से, तबी'अत ने, ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द-ए-बेदवा पाया
दोस्तदार-ए-दुश्मन है, ए'तिमाद-ए-दिल मा'लूम
आह बेअसर देखी, नालः नारसा पाया
सादगि-ओ-पुरकारी, बेख़ुदि-ओ-हुशियारी
हुस्न को तग़ाफ़ुल में, जुरअत आजमा पाया
ग़ुंचः फिर लगा खिलने, आज हमने अपना दिल
ख़ूँ किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पाया
हाल-ए-दिल नहीं मा'लूम, लेकिन इस क़दर या'नी
हम ने बारहा ढूँढा, तुम ने बारहा पाया