भूमिका
मानव मस्तिष्क का विस्तार असीमित होने के बावुजूद एक व्यक्ति का मस्तिष्क कितना ही विशाल क्यों न हो फिर भी सीमित रहता है। बड़े से बड़ा कवि और चिन्तक भी इस नियम का अपवाद नहीं। लेकिन उसकी रचना, कविता या स्वप्न जिसे वह अपने व्यक्तित्व से अलग करके आइने की तरह दुनिया के सामने रखदेता है, मानव-मस्तिष्क का असीमित विस्तार धारण करलेता है। आनेवाली पीढ़ियों का हर पाठक अपनी बौद्धिक योग्यता और भावना की तीव्रता के अनुसार उस रचना में नये अर्थों और गुणों की वृद्धि कर देता है। अतःएव ग़ालिब या शेक्सपियर की एक पंक्ति हज़ार अवसरो पर हज़ार नये अर्थ पैदा कर सकती है। उस के दामन में इतना विस्तार होता है कि वह आनेवाली ज़िन्दगी की ख़ुशियों और ग़मों को समेट सके। इसको समालोचना की भाषा में साधारणीकरण, सर्व व्यापकता, और तहदारी के नाम दिये जाते है, जो भावनारहित और विचारशून्य शाब्दिक बाज़ीगरी से भिन्न है और केवल उस समय पैदा होती है जब कवि अपने युग पर हावी होने के साथसाथ शब्दों के संगीत और उनके अर्थों के गुणों से भी भलीभाँति परिचित हो और उनको इस तरह छेड़ सके जैसे संगीतकार साज़ के तारों को छेड़ता है। साहित्य के लम्बे इतिहास में चन्द गिनी चुनी विभूतियाँ इस स्तर पर पूरी उतरती हैं। ग़ालिब उनमें एक है।
ग़ालिब उर्दू का अत्यन्त लोकप्रिय कवि है जिसे इकबाल ने गेटे का समकक्ष माना है। गत सौ वर्षों में दीवान-ए-ग़ालिब के अनेक संस्करण प्रकाशित हुए हैं और असंख्य लेख लिखे गये हैं। हर समालोचक और पाठक ने अपनी रुचि और स्वभाव के अनुसार ग़ालिब के काव्य में गुंजाइश देखी। कभी प्रशंसा ने श्रद्धा का रूप धारण किया, कभी एक गंभीर विश्लेषण का और कभी उस अतिशयोक्ति का जो कला का सुन्दर आभूषण है।
ग़ालिब का व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक और सर्वव्यापी था। वंश के विचार से वह ऐबक तुर्क था जिसका दादा उसके जन्म (आगरा, २७ दिसम्बर १७९७) से लगभग अर्धशताब्दि पूर्व समरक़न्द से हिन्दुस्तान आया था। इस ख़ान्दान ने ग़ालिब को "चौड़ा चकला हाड, लाँबा क़द, सिडौल इकहरा जिस्म भरे-भरे हाथ-पाँव, किताबी चेहरः, खड़ा नक्शः चौड़ी पेशानी, घनी लम्बी पलकें और, बड़ी बड़ी बादामी आँखें और सुर्ख़-ओ-सुपैद रँग" दिया था। जिस में मदिरा पान के चम्पई कान्ति पैदा कर दी थी। ग़ालिब का स्वभाव ईरानी था, धार्मिक विश्वास 'अरबी, शिक्षादीक्षा और संस्कार हिन्दुस्तानी और भाषा उर्दू। बुद्धि की कुशाग्रता और काव्य-प्रतिभा जन्मसिद्ध