थी और ज़िन्दादिली, विचार-स्वातंत्र्य और शिष्टाचार ने सोने पर सुहागे का काम किया जिसके कारण लोग उसके अहं और अभिमान को भी सहन कर लेते थे। शेर कहना बचपन से प्रारम्भ कर दिया था और पच्चीस वर्ष की आयु से पूर्व ही अपने कुछ उत्तम कसीदे और ग़जले कहली थी और तीस-बत्तीस वर्ष की आयु मे कलकत्ते से दिल्ली तक एक हलचल मचा दी थी। शिक्षा के सम्बन्ध में काफ़ी जानकारी अब तक उपलब्ध नहीं होसकी है लेकिन ग़ालिब अपने युग की प्रचलित विद्याओ का पण्डित था और फ़ारसी भाषा, और साहित्य पर गहरी नजर रखता था। और फिर जीवन का अध्ययन इतना व्यापक था कि उसने स्वयं लिखा है कि सत्तर वर्ष की आयु में जन-साधारण से नहीं जनविशेष से सत्तर हज़ार व्यक्ति नजर से गुजर चुके है। "मैं मानव नही हूँ मानव-पारखी हूँ।" बादशाहो और धनवानो से लेकर मधुविक्रेताओ तक और दिल्ली के पण्डितो और विद्वानो से लेकर अंग्रेज अधिकारियो तक असंख्य व्यक्ति ग़ालिब के निजी दोस्तो में थे। जवानी की रंगरलियो का ज़िक्र अनेक बार स्वयं किया है। नृत्य, संगीत, मदिरा, सौन्दर्योपासना, जुआ किसी वस्तु से विरक्ति प्रकट नहीं की। और जब बीस पच्चीस वर्ष की आयु मे रंगरलियो से दिल हट गया तो सूफ़ियो जैसा स्वतन्त्र आचार-विचार अपनाया और हिन्दू मुसलमान ईसाई सब से एकसा व्यवहार किया। नमाज़ पढ़ी नहीं, रोज़ा रखा नही, शराब कभी छोड़ी नहीं। हमेशा स्वयं को गुनहगार कहा लेकिन खुदा, रसूल और इस्लाम पर पूरा विश्वास था। चन्द चीजो का शौक हवस की हद तक था। विद्या और प्रतिष्ठा की लालसा एक तीव्र तृष्णा बनकर उम्र भर साथ रही। कडवे करेले, इमली के खट्टे फूल, चने की दाल, अंगूर, आम, कबाब, शराब, मधुर राग और सुन्दर मुखडे हमेशा दिल को खीचते रहे। यो तो ग़ालिब उम्र भर इन चीजो के लिये तरसता रहा लेकिन यदि कभी चन्द चीजे एक साथ जमा होगई तो उस वक्त उसका दिमाग़ आस्मान पर पहुँच गया और उसने स्वयं को त्रिलोक का सम्राट समझ लिया।
चन्द घटनाएँ ग़ालिब के जीवन में बड़ी महत्वपूर्ण है। बचपन में अनाथ होजाना, दिल्ली का निवास और कलकत्ते की यात्रा। और इनका प्रभाव उसके व्यक्तित्व और काव्य पर बड़ा गहरा है। उसके प्रारम्भिक जीवन और शा'अिरी की बेगह-रवी प्रसिद्ध है। जो बच्चा पाँच वर्ष की आयु मे पिता के वात्सल्य से वंचित हो गया हो और जिसे कोई उपयुक्त तरबियत (शिक्षा-दीक्षा) न मिली हो वह अपनी प्रतिभा और गुणो के आधार पर ही आगे बढ़ सकता था। और इसमें बेराह-रवी बडी महत्वपूर्ण मंज़िल है जहाँ ठोकरे उस्ताद का काम करती है। कहा जाता है कि मीर ने ग़ालिब की प्रारम्भिक