पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३४

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बकद्र-ए-ज़र्फ़ है, साकी, खुमार-ए-तश्नः कामी भी जो तू दरिया-ए-मै है, तो मैं खमियाजः हूँ साहिल का महरम नहीं है तू ही नवाहा -ए-राज का याँ वर्न : जो हिजाब है, पर्दः है साल का रंग-ए-शिकस्तः, सुब्ह-ए-बहार-ए-नजारः है यह वक्त है शिगुफ़्तन-ए-गुलहा-ए-नाज का तू और सू-ए-गैर नजरहा-ए-तेज तेज़ मैं और दुख तिरी मिशःहा-ए-दराज का सर्फः है जब्त-ए-अाह में मेरा, वगर्नः मैं तोमः हूँ, एक ही नफ़स-ए-जाँ गुदाज का हैं, बसकि जोश-ए-बादः से, शीशे उछल रहे हर गोशः-ए-बिसात, है सर शीशः बाज़ का काविश का दिल करे है तकाजा, कि है हनोज नाखुन प कर्ज, इस गिरह-ए-नीमबाज का ताराज-ए-काविश-ए-ग़म-ए-हिजराँ हुअा, असद सीन:, कि था दफ़ीनः गुहरहा-ए-राज का