पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३३

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हनोज, इक परतव-ए-नक्श-ए-ख़याल-ए-यार बाक़ी है दिल-ए-अफ्सुर्दः, गोया, हुजरः है यूसुफ़ के जिन्दाँ का बराल में गैर की, अाज अाप सोते हैं कहीं, वनः सबब क्या, ख्वाब में आकर तबस्सुमहा-ए-पिन्हाँ का नहीं मालूम, किस किसका लहू पानी हुआ होगा क़यामत है, सरश्क आलूदः होना तेरी मिशगाँ का नज़र में है हमारी जादः-ए-राह-ए-फ़ना ग़ालिब कि यह शीराजः है 'पालम के अज्जा-ए-परीशाँ का न होगा यक बयाबाँ मान्दगी से जौक कम मेरा हबाब-ए-मौजः-ए-रफ़्तार है नक्श-ए-कदम मेरा महब्बत थी चमन से, लेकिन अब यह बेदिमागी है कि मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा सरापा रेड्न-ए-'अिश्क-ओ-नागुजीर-ए-उल्फ़त-ए-हस्ती 'बिबादत बर्क की करता हूँ और अफ़सोस हासिल का