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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३३

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हनोज़, इक परतव-ए-नक़्श-ए-ख़याल-ए-यार बाक़ी है
दिल-ए-अफ्सुर्दः, गोया, हुजरः है यूसुफ़ के ज़िन्दाँ का
बग़ल में ग़ैर की, आज आप सोते हैं कहीं, वर्नः
सबब क्या, ख़्वाब में आकर तबस्सुमहा-ए-पिन्हाँ का
नहीं मा'लूम, किस किसका लहू पानी हुआ होगा
क़यामत है, सरश्क आलूदः होना तेरी मिशगाँ का
नज़र में है हमारी जादः-ए-राह-ए-फ़ना ग़ालिब
कि यह शीराज़: है 'आलम के अज्ज़ा-ए-परीशाँ का

११

न होगा यक बयाबाँ मान्दगी से ज़ौक़ कम मेरा
हबाब-ए-मौजः-ए-रफ़्तार है नक़्श-ए-कदम मेरा
महब्बत थी चमन से, लेकिन अब यह बेदिमाग़ी है
कि मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा

१२

सरापा रेह्न-ए-'अिश्क़-ओ-नागुज़ीर-ए-उल्फ़त-ए-हस्ती
'अबादत बर्क की करता हूँ और अफ़सोस हासिल का