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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३६

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क्या रहूँ ग़ुर्बत में ख़ुश, जब हो हवादिस का यह हाल
नाम: लाता है वतन से नाम:बर, अक्सर खुला

उसकी उम्मत में हूँ मैं, मेरे रहें क्यों काम बन्द
वासते जिस शह के, ग़ालिब, गुंबद-ए-बेदर खुला

१५


शब, कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से, जहर:-ए-अब्र आब था
शो'अलः-ए-जव्वालः हर इक हल्क़:-ए-गिरदाब था

वाँ करम को, अज़-ए-बारिश, था अनाँगीर-ए-ख़िराम
गिरिये से याँ, पंबः-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था

वाँ, ख़ुदआराई को, था मोती पिरोने का ख़याल
याँ, हुजूम-ए-अश्क में, तार-ए-निगह नायाब था

जल्वः-ए-गुल ने किया था; वाँ, चराग़ाँ आबजू
याँ; रवाँ मिशगान-ए-चश्म-ए-तर से खून-ए-नाब था

याँ, सर-ए-पुरशोर बेख्वाबी से था दीवार जू
वाँ, वह फ़र्क़-ए-नाज़ महब-ए-बालिश-ए-कमख्वाब था

याँ, नफ़स करता था रौशन शमअ-ए-बज़्म-ए-बेख़ुदी
जलवः-ए-गुल, वाँ, बिसात-ए-सोहबत-ए-अहबाब था