पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३६

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क्या रहूँ गुर्बत में ख़ुश, जब हो हवादिस का यह हाल नाम: लाता है वतन से नाम:बर, अक्सर खुला उसकी उम्मत में हूँ मैं, मेरे रहें क्यों काम बन्द वासते जिस शह के, गालिब, गुंबद-ए-बेदर खुला शब, कि बर्क-ए-सोज़-ए-दिल से, जहर:-ए-अव्र अाब था शो अलः-ए-जव्वालः हर इक हल्क:-ए-गिरदाब था वाँ करम को, 'श्रुज्र-ए-बारिश, था 'धिनाँगीर-ए-ख़िराम गिरिये से याँ, पंबः-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था वाँ, ख़ुदाराई को, था मोती पिरोने का ख़याल याँ, हुजूम-ए-अश्क में, तार-ए-निगह नायाब था जल्वः-ए-गुल ने किया था; वाँ, चरागाँ अाबजू याँ; रखाँ मिशगान-ए-चश्म-ए-तर से खून-ए-नाब था याँ, सर-ए-पुरशोर बेख्वाबी से था दीवार जू वाँ, वह फ़क़-ए-नाज़ महब-ए-बालिश-ए-कमख्वाब था याँ, नफ़स करता था रौशन शम'अ-ए-बज़्म-ए-बेखुदी जलवः-ए-गुल, वाँ, बिसात-ए-सोहबत-ए-अहबाब था