पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३७

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फ़श से ता 'अर्श, वाँ तूफ़ाँ था मौज-ए-रंग का याँ जमीं से आस्माँ तक सोखतन का बाब था नागहाँ, इस रंग से वनाबः टपकाने लगा, दिल, कि जौक़-ए-काविश-ए-नाखुन से लज्जतयाब था नालः-ए-दिल में शब, अन्दाज-ए-असर नायाब था था सिपन्द-ए-बज्म-ए-वस्ल-ए-गैर, गो बेताब था मक़दम-ए-सैलाब से, दिल क्या निशात आहंग है, ख़ानः-ए-'पाशिक, मगर, साज-ए-सदा-ए-आब था नाजिश-ए-अय्याम-ए-ख़ाकिस्तर नशीनी, क्या कहूँ, पहलु-ए-अन्देशः, वक्फ-ए-बिस्तर-ए-संजाब था कुछ न की, अपने जुनून-ए-नारसा ने, वर्न: याँ जर्रः जर्र:, रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-'पालम ताब था अाज क्यों परवा नहीं, अपने असीरों की तुझे कल तलक, तेरा भी दिल मेह्र-ओ-वफा का बाब था याद कर वह दिन, कि हर इक हल्क़ः तेरे दाम का इन्तिज़ार-ए-सैद में, इक दीद:-ए-बेख्वाब था