पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/४०

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शब, खुमार-ए-शौक़-ए-साकी, रस्तखेज अन्दाज: था ता मुहीत-ए-बादः सूरत ख़ानः-ए-खमियाजः था यक कदम वहशत से, दर्स-ए-दफ़्तर-ए-इमकाँ खुला जादः, अज्जा-ए-दो बालम दश्त का, शीराज: था माने'अ-ए-वहशत खिरामीहा-ए-लैला, कौन है ख़ानः-ए-मजनून-ए-सहरा गर्द, बे दरवाज: था पूछ मत रुस्वाइ-ए-अन्दाज-ए-इरितराना-ए-हुस्न दस्त मरहून-ए-हिना, रुखसार रेन-ए - गाज: था नालः-ए-दिल ने दिये औराक-ए-लख्त-ए-दिल, बबाद यादगार-ए-नालः, इक दीवान-ए-बे शीराजः था दोस्त रामख्वारी में मेरी, सथि फ़रमायेंगे क्या ज़ख्म के भरने तलक , नाखुन न बढ़ जायेंगे क्या बेनियाजी हद से गुजरी, बन्दः परवर कब तलक हम कहेंगे हाल-ए-दिल, और आप फरमायेंगे क्या