सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९

शब, ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी, रस्तख़ेज़ अन्दाज: था
ता मुहीत-ए-बादः सूरत ख़ानः-ए-खमियाजः था

यक क़दम वहशत से, दर्स-ए-दफ़्तर-ए-इमकाँ खुला
जादः, अज्ज़ा-ए-दो'आलम दश्त का, शीराज: था

माने'अ-ए-वहशत ख़िरामीहा-ए-लैला, कौन है
ख़ानः-ए-मजनून-ए-सहरा गर्द, बे दरवाज़: था

पूछ मत रुस्वाइ-ए-अन्दाज-ए-इरितराना-ए-हुस्न
दस्त मरहून-ए-हिना, रुख़सार रेह्न-ए-ग़ाज़: था

नालः-ए-दिल ने दिये औराक़-ए-लख़्त-ए-दिल, बबाद
यादगार-ए-नालः, इक दीवान-ए-बे शीराजः था

२०


दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी, स'अ फ़रमायेंगे क्या
ज़ख्म के भरने तलक, नाख़ुन न बढ़ जायेंगे क्या

बेनियाजी हद से गुज़री, बन्दः परवर कब तलक
हम कहेंगे हाल-ए-दिल, और आप फरमायेंगे क्या