पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/४६

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प-ए-नज़र-ए-करम तोहफ़:, है शर्म-ए-नारसाई का
बख़ूँ ग़लतीदः-ए-सद रंग दा‘वा पारसाई का

न हो हुस्न-ए-तमाशा दोस्त, रुस्वा बेवफ़ाई का
बमुह्र-ए-सद नज़र साबित है दा‘वा पारसाई का

ज़कात-ए-हुस्न दे, अय जल्व:-ए-बीनश, कि मेह्र-आसा
चराग़-ए-ख़ान:-ए-दरवेश हो, कासः गदाई का

न मारा, जानकर बेजुर्म, क़तिल तेरी गर्दन पर
रहा मानिन्द-ए-ख़ून-ए-बेगुनह, हक़ आशनाई का

तमन्ना-ए-ज़बाँ महब -ए- सिपास-ए-बेज़बानी है
मिटा जिससे तक़ाज़ा, शिकव:-ए-बेदस्त-ओ-पाई का

वही इक बात है, जो याँ नफ़स, वाँ नकहत-ए-गुल है
चमन का जल्वः बा‘अिस है, मिरी रंगीं नवाई का

दहान-ए-हर बुत-ए- पैग़ारःजू, ज़ंजीर-ए-रुस्वाई
‘अदम तक बेवफ़ा, चरचा है तेरी बेवफ़ाई का

न दे नामे को इतना तूल, गालिब; मुख्त़सर लिख दे
कि हसरत संज हूँ, ‘अर्ज-ए-सितमहा-ए-जुदाई का