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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/४५

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कम नहीं, नाजिश-ए-हमनामि-ए-चश्म-ए-ख़ूबाँ
तेरा बीमार, बुरा क्या है, गर अच्छा न हुआ

सीने का दाग़ है, वह नाल: कि लब तक न गया
ख़ाक का रिज्क़ है, वह क़तर: कि दरिया न हुआ

काम का मेरे है, वह दुख कि किसी को न मिला
काम में मेरे है, वह फ़ितन: कि बरपा न हुआ

हर बुन-ए-मू से, दम-ए-जिक्र, न टपके ख़ूँनाब
हमज़: का क़िस्स: हुआ, 'अिश्क़ का चरचा न हुआ

क़तरे में दजल: दिखाई न दे, और जुज्व में कुल
खेल लड़कों का हुआ, दीद:-ए-बीना न हुआ

थी ख़बर गर्म, कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े
देखने हम भी गये थे, प तमाशा न हुआ

२४


असद, हम वह जुनूँ जौलाँ गदा-ए-बेसर-ओ-पा हैं
कि है सर पन्ज:-ए-मिशगान-ए-आहू, पुश्त-ए-ख़ार अपना