पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/५७

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लब-ए-ख़ुश्क दर तशनिगी, मुर्दगाँ का जियारत कदः हूँ, दिल आजुर्दगाँ का हमः नाउमीदी, हमः बदगुमानी मैं दिल हूँ, फ़रेब-ए-वफ़ा खुर्दगाँ का तू दोस्त किसी का भी, सितमगर, न हुआ था औरों प है वह जुल्म, कि मुझ पर न हुआ था छोड़ा मह-ए-नख्शब की तरह, दस्त-ए-क़ज़ा ने ख़ुर्शीद हनोज उसके बराबर न हुआ था तौफ़ीक़ ब अन्दाज:-ए-हिम्मत है अजल से आँखों में है वह कतरः, कि गौहर न हुआ था जब तक कि न देखा था, क़द-ए-यार का 'आलम मैं मोतक़िद-ए-फ़ितनः-ए-महशर न हुआ था मैं सादः दिल, आजुर्दगि-ए-यार से खुश हूँ या'नी सबक-ए-शौक़, मुकर्रर न हुआ था