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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/५८

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दरिया-ए-म'आसी, तुनुक आबी से, हुआ ख़ुश्क
मेरा सर-ए-दामन भी, अभी तर न हुआ था

जारी थी असद, दाग़-ए-जिगर से मिरे तहसील
आतशकदः, जागीर-ए-समन्दर न हुआ था

४०


शब, कि वह मजलिस फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था
रिश्तः-ए-हर शम'अ, ख़ार-ए-किसवत-ए-फ़ानूस था

मशहद-ए-'आशिक़ से कोसों तक जो उगती है हिना
किसक़दर, यारब, हलाक-ए-हसरत-ए-पाबोस था

हासिल-ए-उल्फ़त न देखा, जुज़ शिकस्त-ए-आरजू
दिल बदिल पैवस्तः, गोया इक लब-ए-अफ़सोस था

क्या कहूँ बीमारि-ए-गम़ की फ़राग़त का बयाँ
जो कि खाया ख़ून-ए-दिल, बेमिन्नत-ए-कीमूस था

४१


आईनः देख, अपना सा मुँह ले के रह गये
साहब को, दिल न देने प कितना ग़ुरूर था