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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/६

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उर्दू काव्य से वरसे में मिले थे। यह कहने के बाद भी कि "शा 'अिर को तसव्वुफ़ शोभा नही देता" ग़ालिब ने सृष्टि को समझने के लिए और धर्म के दिखावे से बचने के लिए तसव्वुफ़ के कुछ विचारो से सहायता ली और उन्हीं से अपनी स्वतंत्र और तीखी प्रकृति का प्रशिक्षण किया।

वह वहदत-ए-बुजूद (विश्वदेवतावाद, जगीश्वरवाद, यह विश्वास कि सृष्टि के अनेक रूपो में एक ही तत्त्व विद्यमान है) का माननेवाला था। उसने अपनी फारसी मसनवी "अब्र-ए-गुहरबार" में विश्व को चेतना-दर्पण (आईन:-ए-आगही) कहा है जो ब्रह्म-रूप (वज्हुल्लाह) के दर्शन का वातावरण है। न केवल यह कि मानव जिस दिशा में मुँह करता है उस ओर "वह ही वह" नज़र आता है बल्कि जिस मुँह को मानव चारो ओर मोड़ रहा है वह ख़ुद "उसी" का मुँह है। दूसरी जगह फारसी गद्य में यह कहा है कि कण का अस्तित्व उसके अपने अहंकार (पिंदार) के अतिरिक्त कुछ नहीं, जो कुछ है परम्सत्य के सूर्य का आलोक है। दरिया हर जगह बह रहा है और उसमें तरंग, बुलबुले और भँवर उभर रहे है। और "हमःऊस्त" (सब कुछ वही है) ही "हम:ऊस्त" है (ग़ज़ल ९९, शेर ६, ७; ग़ज़ल १६३ शेर ४, ५, ६, ७)।

चूँकि सृष्टि एक वहदत (एकत्व, अद्वैत) है और अस्लज़ात (ब्रह्म) नश्वर नहीं है इसलिए विश्व भी नश्वर नहीं हो सकता। ग़ालिब ने यह बात इतनी खुलकर कहीं नहीं कही है लेकिन अपनी फारसी पुस्तक "मेहर-ए-नीम रोज़" में यह विश्वास प्रकट किया है कि जगत्का का कोई बाह्य अस्तित्व नहीं है (या'नी ख़ुदा की ज़ात से अलग जगत की कल्पना केवल भ्रम है "हर चंद्र कहें कि है, नहीं है") इसलिए अनश्वरता, नश्वरता, नवीनता और पुरातनता का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता। सिफ़ात (गुण) 'अन-ए-ज़ात (स्वयंब्रह्म) हैं और आलोक सूर्य से अलग नहीं। कयामत (प्रलय) के बाद नया आदम (मनु) पैदा होगा और एक आदम के बाद दूसरा आदम प्रकट होगा और संसार योंही चलता रहेगा। ग़ालिब के इस शे'र से भी इस विचार की पुष्टि होती है:

आगइश-ए-जमान से फ़ारिग़ नही हनोज़
पेश-ए-नज़र है आइनः दाइम निकाब में

(९९-९)

यहीं से दूसरा प्रश्न उत्पन्न होता है। यदि विश्व ब्रह्म का प्रकाश है तो वे चीजें जिन्हें बदी, गुनाह, मुसीबत, तकलीफ़, दर्द और ग़म कहा जाता है कहाँ से आयी हैं, अंतर्विरोध कहाँ से उभरते है। इसका बॅधा-टका पुराना जवाब तो यह है कि आलोक ब्रह्म से जितना दूर होता जाता है उतनी ही उसमे मलिनता (कसाफ़त) आती जाती है। किन्तु इस उत्तर की तार्किक कमज़ोरी यह है कि अन्तर ब्रह्म से अलग वस्तु बन जाता है और "हमःऊस्त" के