सर्वव्यापी घेरे को तोड़ देता है।
ग़ालिब ने यह प्रश्न उठाया जरूर किन्तु इसका संतोषप्रद उत्तर न दे सका। स्वयं सूफ़ियों और दार्शनिको से यह प्रश्न नहीं सँभल सका तो एक कवि से क्या आशा की जा सकती है। अपनी एक फ़ारसी मसनवी "अब्र-ए-गुहरबार" के "मुनाजात" वाले हिस्से में ग़ालिब केवल यह कह सका कि सिफ़ात-ए-कमाल (गुण) के एक बिन्दु से तमाम अंतर्विरोधी वस्तुएँ पैदा होती हैं लेकिन यह वर्णन-चमत्कार जो "हमःऊस्त" का विवरण है, असली प्रश्न का उत्तर नहीं है। इससे अधिक कवितामय और संतोषप्रद उत्तर फ़ारसी के पहले कसीदे में मिलता है जिसमे ग़ालिब खुदा से संबोधन करता है कि तूने अन्य के संदेह (वहम-ए-ग़ैर) से दुनिया में हलचल मचा रखी है। खुद ही एक अक्षर कहा और खुद ही शंका में पड़ गया। यह खुद और ग़ैर-ए-खुद का विभाजन ऐसा है कि देखनेवाला और देखा जानेवाला एक होते हुए भी दो मालूम दे रहे हैं और इनके बीच में पूजा की रीति (रस्म-ए-परस्तिश) का पर्दा पड़ा हुआ है। यद्यपि अद्वैत में द्वैत की समाई नहीं है। फिर आगे चलकर वह गुप्त भेद से पर्दा उठाता है और कहता है कि दुख दर्द भी वहीं से आये हैं किन्तु इस लिए कि सुख-चैन का आनंद बढ़ा दें। हेमन्त का औचित्य ग़ालिब ने आनंद के नवीनीकरण में ढूँढा है। कठिनाइयाँ एक प्रकार की परीक्षा है ताकि मित्र शत्रु की दृष्टि से छिपा रहे। और अतिथि के पथ में काँटे इसलिए बिछाये गये है कि जब जीर्णता का इलाज किया जाय तो सुख का नया आनंद मिले मानो ख़ुद और ग़ैर-ए-ख़ुद का विभाजन एक ऐसी विपरीतता का कारण है जो जीवन को जीवन बनाती है। यह विपरीतता अद्वैत है द्वैत नहीं—
लताफ़त बेकसाफ़त जल्वः पैदा कर नहीं सकती
चमन जंगार है आईनः-ए-बाद-ए-बहारी का(४८)
यहाँ पहुँचकर बदी नेकी का एक हिस्सा बन जाती है। अपूर्ण और पूर्ण का भेद समाप्त हो जाता है (४२–४)। पदार्थ और आत्मा, जीवन और मृत्यु सब एक हो जाते हैं। धर्म और धार्मिक विश्वास की हैसियत "मरुस्थल" से अधिक नहीं रहती। रिति-रिवाज और सम्प्रदाय का त्याग ईमान (विश्वास) का अंग बन जाते है (११२–१४)। हर्ष और विषाद का विभाजन निरर्थक हो जाता है। बहार और खिज़ाँ एक दूसरे के गले मे बाँहें डाल लेती हैं। एक ही रंग का पैमाना घूम रहा है। बहार (वसंत) इसका एक रंग है और खिज़ाँ (पतझड़) दूसरा। दिन रात एक दूसरे के पीछे दौड़ रहे हैं। यह सब अद्वैत का आवेश और उत्क्रोश है। एक बिंदु है जो तेजी से घूम रहा है और अपनी उड़ान के वेग से नाचता हुआ शोला बन गया है। यह अस्तित्व कष्ट और आराम की कल्पना से निस्पृह है। डूबनेवाले ने लहर का तमाँचा खाया है और प्यासे