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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/६०

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बेदाद-ए-'अिश्क़ से नहीं डरता, मगर असद
जिस दिल प नाज़ था मुझे, वह दिल नहीं रहा

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रश्क कहता है, कि उसका ग़ैर से इख़लास, हैफ़
'अक़्ल कहती है, कि वह बेमेह्र किस का आश्ना

ज़र्रः ज़र्र: साग़र-ए-मैख़ानः-ए-नैरँग है
गर्दिश-ए-मजनूँ, ब चश्मकहा-ए-लैला आश्ना

शौक़ है सामाँ तराज़-ए-नाजिश-ए-अर्बाब-ए-'अज्ज़
ज़र्रः सहरा दस्तगाह-ओ-क़तरः दरिया आश्ना

मैं, और इक आफ़त का टुकड़ा, वह दिल-ए-वहशी, कि है
'आफ़ियत का दुश्मन और आवारगी का आश्ना

शिकव: संज-ए-रश्क-ए-हमदीगर न रहना चाहिये
मेरा ज़ानू मूनिस और आईनः तेरा आश्ना

कोहकन, नक्काश-ए-यक तिम्साल-ए-शीरीं था, असद
सँग से सर मार कर होवे न पैदा आश्ना