पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/६०

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बेदाद-ए-'अिश्क से नहीं डरता, मगर असद जिस दिल प नाज था मुझे, वह दिल नहीं रहा ४३ रश्क कहता है, कि उसका रौर से इखलास, हैफ़ 'अक्ल कहती है, कि वह बेमेहर किस का प्राश्ना जरः जरीः सागर -ए - मैख़ानः -ए- नैरंग है गर्दिश-ए-मजनूं, ब चश्मकहा-ए-लैला प्राश्ना शौक है सामाँ तराज-ए-नाजिश-ए-अबाब-ए-'प्रिज्ज जर्रः सहरा दस्तगाह-ओ-क़तरः दरिया प्राश्ना मैं, और इक आफ़त का टुकड़ा, वह दिल-ए-वहशी, कि है 'आफ़ियत का दुश्मन और आवारगी का आश्ना शिक्वः संज-ए-रश्क-ए-हमदीगर न रहना चाहिये मेरा जानू मूनिस और आईनः तेरा आश्ना कोहकन, नक्काश-ए-यक तिम्साल-ए-शीरीं था, असद सँग से सर मार कर होवे न पैदा आश्ना