पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/६४

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५ . लताफ़त बेकसाफ़त जल्वः पैदा कर नहीं सकती चमन जंगार है आईन:-ए-बाद-ए-बहारी का हरीफ़-ए-जोशिश-ए-दरिया नहीं; ख़ुद्दारि-ए-साहिल जहाँ साक़ी हो तू, बातिल है दावा होशियारी का 'श्रित-ए-क़तरः है, दरिया में फ़ना हो जाना दर्द का हद से गुजरना, है दवा हो जाना । तुझसे, किस्मत में मिरी, सूरत-ए-फ़ल-ए-अबजद था लिखा , बात के बनते ही, जुदा हो जाना दिल हुआ कशमकश-ए-चार:-ए-जहमत में तमाम मिट गया घिसने में इस 'शुदे का वा हो जाना अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम, अल्लह अल्लाह इस कदर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना जो फ़ से, गिरियः मुबद्दल बदम-ए-सर्द हुआ बावर आया हमें पानी का हवा हो जाना