पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/६५

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दिल से मिटना तिरी अँगुश्त-ए-हिनाई का ख्याल हो गया, गोश्त से नाखुन का जुदा हो जाना है मुझे, अब-ए-बहारी का बरस कर खुलना रोते रोते ग़म-ए-फुक़त में, फ़ना हो जाना गर नहीं नकहत-ए-गुल को तिरे कूचे की हवस क्यों है, गर्द-ए-रह-ए-जौलान-ए-सबा हो जाना ताकि तुझ पर खुले ए'जाज़-ए-हवा-ए-सैकल देख बरसात में सब्ज़ आइने का हो जाना बख्शे है जल्व :-ए-गुल जौक़-ए-तमाशा; गालिब चश्म को चाहिये हर रंग में वा हो जाना फिर हुआ वक़्त, कि हो बाल कुशा मौज-ए-शराब दे बत-ए-मै को दिल-ओ-दस्त-ए-शना मौज-ए-शराब पूछ मत, वज्ह-ए-सियह मस्ति-ए-अबाब-ए-चमन साय:-ए-ताक में होती है हवा, मौज-ए-शराब जो हुआ रार्क:-ए-मै, बख्त-ए-रसा रखता है सर से गुजरे प भी, है बाल-ए-हुमा , मौज-ए-शराब