सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

५१

अफ़सोस, कि दन्दाँ का किया रिज्क़; फ़लक ने
जिन लोगों की थी, दर्ख़ुर-ए-'अक़्द-ए-गुहर, अँगुश्त

काफ़ी है निशानी तिरी, छल्ले का न देना
ख़ाली मुझे दिखला के, बवक़्त-ए-सफ़र, अँगुश्त

लिखता हूँ, असद, सोज़िश-ए-दिल से, सुख़न-ए-गर्म
ता रख न सके कोई मिरे हर्फ़ पर अँगुश्त

५०


रहा गर कोई ता क़यामत, सलामत
फिर इक रोज़ मरना है, हज़रत सलामत

जिगर को मिरे 'अिश्क़-ए-ख़ूनाबः मशरब
लिखे है ख़ुदावन्द-ए-ने'मत सलामत

'अलर्र ग़म-ए-दुश्मन, शहीद-ए-वफ़ा हूँ
मुबारक मुबारक, सलामत सलामत

नहीं गर सर-ओ-बर्ग-ए-इदराक-ए-मा'नी
तमाशा-ए-नैरँग-ए-सूरत, सलामत