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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/८२

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न पूछ वुस'अत-ए-मै खान:-ए-जुनूँ, ग़ालिब
जहाँ; यह कास:-ए-गर्दूं, है एक ख़ाक अन्दाज़

७०


वुस'अत-ए-स'अ-ए-करम देख, कि सर ता सर-ए-ख़ाक
गुज़रे है आबलः पा अब्र-ए-गुहर बार हनोज़

यक क़लम काग़ज-ए-आतश जदः, है सफ़हः-ए-दश्त
नक़्श-ए-पा में, है तप-ए-गर्मि-ए-रफ्तार हनोज़

७१


क्योंकर उस बुत से रखूँ जान 'अज़ीज़
क्या नहीं है मुझे ईमान 'अज़ीज़

दिल से निकला, प न निकला दिल से
है तिरे तीर का पैकान 'अज़ीज़

ताब लाये ही बनेगी, ग़ालिब
वाक़ि'अः सख़्त है और जान 'अज़ीज़