पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/८३

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न गुल-ए-नरामःहूँ, न पर्द:-ए-साज़
मैं हूँ अपनी शिकस्त की आवाज़

तू, और आराइश -ए- ख़म -ए- काकुल
मैं, और अन्देशहःहा-ए-दूर-ओ-दराज़

लाफ़-ए-तमकीं, फ़रेब-ए-सादः दिली
हम हैं, और राज़हा-ए-सीनः गुदाज़

हूँगिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
वर्नः बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज

वह भी दिन हो, कि उस सितमगर से
नाज़ खेंचूँ, बजाय हसरत-ए-नाज़

नहीं दिल में मिरे, वह क़तरः-ए-खूँँ
जिस से मिश़गाँ हुई न हो गुलबाज़

अय तिरा ग़मजः, यक क़लम अँगेज़
अय तिरा ज़ुल्म, सर बसर अन्दाज़

तू हुआ जल्वः गर, मुबारक हो
रेज़िश-ए-सिज्दः-ए-जबीन-ए-नियाज़