पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/८६

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करे है सर्फ ब ईमा-ए-शोलः किस्सः तमाम बतर्ज-ए-अल-ए- फ़ना, है फ़सानः ख़्वानि-ए-शम्' राम उसको हसरत-ए-परवानः का है, अय शो'लः तिरे लरजने से जाहिर है नातवानि-ए-शम् श्र तिरे ख़याल से रुह एइतिजाज़ करती है ब जल्वः रेजि-ए-बाद-प्रो-ब परफ़िशानि-ए-शम्श्र निशात-ए-दाग़-ए - ग़म-ए- 'अिश्क की बहार, न पूछ शिगुफ्तिगी है शहीद-ए-गुल-ए-ख़जानि-ए-शम्य जले है देख के बालीन-ए-यार पर मुझको न क्यों हो दिल प मिरे, दारा -ए-बदगुमानि-ए-शम् अ बीम-ए - रकीब से नहीं करते विदा-ए-होश मजबूर याँ तलक हुये, अय इरित्तयार, हैफ जलता है दिल, कि क्यों न हम इक बार जल गये अय नातमामि-ए-नफ़स-ए-शो लः बार, हैफ़