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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/८९

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८०

गर तुझको है यक़ीन-ए-इजाबत, दु'आ न माँग
या'नी बिग़ैर-ए-यक दिल-ए-बेमुद्दा'आ, न माँग

आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
मुझसे मिरे गुनह का हिसाब, अय खुदा न माँग

८१


है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल
बुलबुल के कार-ओ-बार प हैं ख़न्दःहा-ए-गुल

आज़ादि-ए-नसीम मुबारक, कि हर तरफ़
टूटे पड़े हैं हल्क़:-ए-दाम-ए-हवा-ए-गुल

जो था, सो मौज-ए-रँग के धोके में रह गया
अय वाये, नाल:-ए-लब-ए-ख़ूनीं नवा-ए-गुल

खुश हाल उस हरीफ़-ए-सियह मस्त का, कि जो
रखता हो मिस्ल-ए-सायः-ए-गुल, सर ब पा-ए-गुल

ईजाद करती है उसे तेरे लिये, बहार
मेरा रक़ीब है, नफ़स-ए-'अत्र सा-ए-गुल