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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९१

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दाइमुल हब्स इस में हैं लाखों तमन्नायें, असद
जानते हैं सीनः-ए-पुरख़ूँ को ज़िन्दाँ ख़ानः हम

८३


ब नालः हासिल-ए-दिल बस्तगी फ़राहम कर
मता'-ए-ख़ानः-ए-ज़ंजीर, जुज़ सदा, मा'लूम

८४


मुझको दयार-ए-ग़ैर में मारा, वतन से दूर
रख ली मिरे ख़ुदा ने, मिरी बेकसी की शर्म

वह हल्क:हा-ए-ज़ुल्फ़, कमीं में हैं, अय ख़ुदा
रख लीजो मेरे दा'वः-ए-वारस्तगी की शर्म

८५


लूँ दाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्तः से, यक ख्व़ाब-ए-ख़ुश, वले
ग़ालिब, यह ख़ौफ़ है, कि कहाँ से अदा करूँ