पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९१

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दाइमुल हब्स इस में हैं लाखों तमन्नायें, असद जानते हैं सीनः-ए-पुरखू को जिन्दाँ ख़ानः हम ब नालः हासिल-ए-दिल बस्तगी फ़राहम कर मता -ए-ख़ानः-ए-जंजीर, जुज़ सदा, मालूम ८४ मुझको दयार-ए-रौर में मारा, वतन से दूर रख ली मिरे ख़ुदा ने, मिरी बेकसी की शर्म वह हल्क:हा-ए-जुल्फ़, कमीं में हैं, अय ख़ुदा रख लीजो मेरे दावः-ए-वारस्तगी की शर्म लूँ दाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्तः से, यक ख्वाब-ए-ख़ुश, वले गालिब, यह ख़ौफ़ है, कि कहाँ से अदा करूँ