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दुखी भारत

अंश-मात्र है। कमीशन की सम्मति केवल इसी कथन तक परिमित है कि 'अध्यापिकाओं की स्थिति बड़ी संकटमय है क्योंकि उनके सम्बन्ध में लोगों के अच्छे विचार नहीं हैं।' मिस मेयो जो बात सिद्ध करना चाहती है उससे इन शब्दों का अर्थ सर्वथा भिन्न है। इससे उस वाक्य का भी अर्थ स्पष्ट हो जाता है जिसे मिस मेयो ने कमीशन की सम्मति कहा है; यद्यपि वह कमीशन के सामने दी गई एक गवाही का अंश है जिसमें इस बात पर खेद प्रकट किया गया था कि जो स्त्रियाँ पर्दे में नहीं रहतीं लोग उनकी रक्षा और सम्मान का ध्यान नहीं रखते। ठीक हो या ग़लत बङ्गाल के देहात में स्त्रियों का पर्दे में ही रहना सम्मानसूचक समझा जाता है।[१] क्या इस सम्मति से जिसका उल्लेख केवल बङ्गाल के सम्बन्ध में किया गया है मिस मेयो द्वारा समस्त भारतीयों पर लगाया गया भयङ्कर अपराध न्याययुक्त कहा जा सकता है?

उत्तर-भारत के एक अमरीकन मिशन कालिज के प्रधान के साथ जिस वक्तव्य का सम्बन्ध लगाया गया वह भी इसी प्रकार शैतानी और द्वेष से भरा हुआ है। उसकी सत्यता पर विश्वास करने का कोई मार्ग नहीं है।

मिस मेयो ने अपनी पुस्तक के १९१ पृष्ठ पर मध्यप्रान्त के शिक्षा-विभाग के भूतपूर्व डाइरेक्टर मिस्टर आर्थर मेह्यू की 'भारतवर्ष में शिक्षा-प्रचार' नामक पुस्तक से उद्धरण दिया है। यह उद्धरण देने में उसने मिस्टर मेह्यू के कुछ शब्द छोड़ दिये हैं ताकि शेष उद्धरण का पाठकों के दिल पर अनुचित प्रभाव पड़े। नीचे मूल और उद्धृत अंश दोनों बराबर पर दिये जाते हैं। आशा है इससे पाठकों को उसके कुटिल कौशल का पता लग जायगा:—

"एक अत्यन्त गम्भीर विरोध की बात यह है कि जो स्त्रियाँ अपने कुटुम्ब से बाहर काम करती हैं उनकी रक्षा.....करनी कठिन है। उनका बिना अपराध या पतन के काम करना केवल

"एक अत्यन्त गम्भीर विरोध की बात यह है कि जो स्त्रियाँ अपने कुटुम्ब से बाहर काम करती हैं उनकी रक्षा के लिए अनुकूल निवासस्थान और साथियों का प्रबन्ध करना कठिन है।


  1. यद्यपि शहरों में इस बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। मदरास तथा कतिपय दूसरे प्रान्तों में भी यह बात नहीं मानी जाती, जैसा कि मिस मेयो ने स्वयं स्वीकार किया है।