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'शिक्षा क्यों नहीं दी जाती?'

मिशन-सम्बन्धी संस्थानों में और अच्छे निरीक्षण में रहनेवाले स्कूलों में ही संभव प्रतीत होता है। सब प्रकार के सार्वजनिक स्कूलों के चलाने में वे (विधवाएँ) कोई उल्लेखनीय भाग नहीं ले सकतीं।" [इस प्रकार मदर इंडिया में उद्धृत किया गया है।

उनका बिना अपराध या पतन के काम करना केवल मिशन-सम्बन्धी संस्थाओं में और अच्छे निरीक्षण में रहनेवाले स्कूलों में ही सम्भव प्रतीत होता है। सब प्रकार के सार्वजनिक स्कूलों के चलाने में वे (विधवायें) कोई उल्लेखनीय भाग नहीं ले सकती!" [इस प्रकार मूल पुस्तक में है]

झूठे बिन्दुओं! केवल दो चार शब्दों को हटाकर तुमने इस उद्धरण का बिलकुल भिन्न अर्थ कर दिया। परन्तु यह उस व्यापार का कौशल है जिसमें मिस मेयो विशेषज्ञ होना चाहती है। भारतीय विधवा के गाँवों में जाकर बिना अनुकूल निवासगृह और साथियों के नहीं रह सकती इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि 'सन्तानोत्पत्ति योग्य आयुवाली होने के कारण वह भारतीय पुरुषों की पहुँच में जाने का साहस नहीं कर सकती।'

अध्यापिकाओं के विरुद्ध लोगों में जो बुरी धारणाएँ उत्पन्न हो गई थीं उनका वर्णन, संयुक्तप्रान्त की जन-संख्या-गणना के विवरण में एक स्थान पर, जिसे मिस मेयो ने अपनी पुस्तक में उद्धृत भी किया है, इस प्रकार पाया जाता है[१]:—

"कहा जाता है कि लोगों में यह भाव फैला हुआ है कि लज्जावती स्त्रियाँ अध्यापन कार्य नहीं कर सकतीं। पहले तो इसी बात का पता लगाना कठिन है कि ऐसे भावों की उत्पत्ति कैसे हुई? जहाँ तक हम समझते हैं इसके पक्ष में जो भारतीय मत है वह कुछ इस प्रकार का होगा—'स्त्री के जीवन का उद्देश्य गृहणी बनना है। यदि वह विवाहिता होगी तो उसके गृह-कार्य्य उसे अध्यापिका बनने से रोकेंगे। यदि वह अध्यापिका बनेगी तो गृहकार्य्यों को कैसे करेगी? यदि किसी स्त्री के सम्बन्ध में यह कहा जाय कि वह गृह-कार्य्यों से मुक्त है तो वह अवश्य अविवाहिता होगी। और अविवाहिता स्त्रियाँ जैसा उनको होना चाहिए उससे अच्छी नहीं हो सकतीं। अर्थात् यदि कोई स्त्री अपने गृहकार्यों की उपेक्षा करती है तो इस दशा में उसे जैसी होना चाहिए उससे अच्छी वह नहीं हो सकती।"


  1. भारतीय सेंसस रिपोर्ट १९११, भाग १५ पृष्ठ २२९