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चाण्डाल से भी बदतर


जायँ। इन दफाओं से निःसन्देह पन्द्रहवें संशोधन पर आघात पहुँचता है और इन दफ़ाओं का जिन राज्यों ने प्रयोग किया है उन पर चौदहवें संशोधन का वह अंश भी लागू होता है जिसका आशय यह है कि मताधिकार से जितने नागरिक वन्चित किये जायें उतने ही अनुपात में प्रतिनिधियों की संस्था में भी कमी कर दी जाय। परन्तु बड़ी अदालत ने सदा सावधानी के साथ इस विधानात्मक समस्या की उपेक्षा की है और कांग्रेस ने भी किसी राज्य का प्रतिनिधित्व कम करना उचित नहीं समझा। वर्तमान राजनैतिक स्थिति को देखते हुए यह असम्भव प्रतीत होता है कि इन मताधिकार सम्बन्धी साधनों को बेकार कर देने के लिए कुछ किया जा सकेगा।"

परन्तु इन बातों का यहीं अन्त नहीं हो जाता। हबशियों का मताधिकार छीनने और छल या बलपूर्वक उन्हें राजनीति से पृथक् कर देने के अतिरिक्त दक्षिणी धारा सभाओं ने उनके विरुद्ध अनेक भेद-भाव उत्पन्न करनेवाले कानूनों की रचना की है। १९१० ईसवी में ५२ राज्यों में से २६ ने स्थायी या सामयिक कानून बनाकर हबशियों का गोरों के साथ अन्तर-विवाह वर्जित कर दिया। ऐसे मिश्रित सम्बन्ध अप्रचलित घोषित कर दिये गये हैं। और जो परस्पर ऐसे सम्बन्ध स्थापित करते हैं उन पर कुछ राज्यों में 'दुराचार,' कुछ में 'व्यभिचार' और कुछ में 'गुण्डापन' का अपराध लगाया जाता है। भिन्न भिन्न राज्यों में दण्ड भी भिन्न भिन्न दिये जाते। कतिपय दक्षिणी राज्यों में १-१० वर्ष तक का कारागारवास दिया जाता है। कुछ में कम से कम केवल ५० शिलिङ्ग का अर्थ-दण्ड दिया जाता है और कुछ में केवल गोरी जाति के व्यक्ति को दण्ड दिया जाता है, हबशी को बिलकुल नहीं। जातियों के अन्तर-सम्बन्ध के विषय में एम॰ सीग फ़्रीड लिखते हैं कि 'स्त्री की रक्षा तो बड़ी सफलता के साथ की जा सकती है परन्तु हबशी महिला की दशा बिलकुल भिन्न है। प्रमाण के लिए 'हमें केवल अफ्रीका के आदि निवासियों और अमरीका के सभ्य हबशियों के रङ्ग की तुलना कर लेना ही यथेष्ट है।'[१]


  1. ए॰ सीगफ्रीड-लिखित 'अमरीका कम्स आफ़ एज' जोनाथन केप, (१९२७) पृष्ठ ९९