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दुखी भारत

"जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं। परन्तु जहाँ उनकी पूजा नहीं होती कहाँ सब क्रियायें निष्फल जाती हैं।

"जिस कुल में स्त्रियों दुख पाती हैं वह कुल शीघ्र ही विनष्ट हो जाता है। परन्तु जहाँ वे दुःख नहीं पाती वहीं सदैव सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होती है।

"अपमानित होकर जिन गृहों को स्त्रियाँ शाप देती हैं वे इतने शीघ्र नष्ट हो जाते हैं माने किसी ने जादू कर दिया हो।

"इसलिए जो लोग सुख-सम्पत्ति की वृद्धि चाहते हैं उन्हें चाहिए कि वे उत्सवों और त्यौहारों पर आभूषणों, वस्त्रों और भोजनों से स्त्रियों की पूजा करें।"

यह बात पुनर्बार कही गई है कि यदि पत्नी प्रसन्न रहेंगी तो सम्पूर्ण परिवार प्रसन्न रहेगा; यदि वह प्रसन्न न रहेगी तो सब लोग दुखी रहेंगे*[१]

इसकी मनु द्वारा पाँचवें अध्याय में समस्त स्त्रियों के सम्बन्ध में कही गई निम्नलिखित अयोग्यताओं से ज़रा तुलना कीजिए:-

"बाल्यावस्था में (स्त्री) अपने पिता के अधीन रहे युवावस्था में (अपने) पति के अधीन रहे; पति के मर जाने पर पुत्र के अधीन रहे। स्त्री कभी स्वतन्त्र न हो।

"उसे अपने पिता, पति, था पुन से कभी पृथक् होने की आकांक्षा न करनी चाहिए। क्योंकि उनसे पृथक् होने से उसके दोनों कुलों की निन्दा होगी।

"उसे सदैव प्रसन्न-मुख रहना चाहिए, गृहस्थी के कार्यों में निपुण होना चाहिए। गृह की सब वस्तुओं को स्वच्छतापूर्वक रखनी चाहिए। और व्यय करने में उसको स्वतन्त्रता न लेनी चाहिए†[२]।"

नवें अध्याय के २ और ३ श्लोकों में पुनर्वार कहा गया है किः-

"उन्हें रात-दिन कुटुम्ब के पुरुषों के अधीन रखना चाहिए। बाल्यावस्था में पिता उनकी रक्षा करता है, युवावस्था में पति और वृद्धावस्था में पुत्र।"

  1. * मनुस्मृति अध्याय ३।६२
  2. † मनुस्मृति अध्याय २।१४८-१५०