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दुखी भारत

अक्टूबर १९२५ में मिस मेयो लन्दन के इंडिया आफ़िस में थी। अपनी पुस्तक की भूमिका में उसने तारीख़ और साल नहीं दिया। इससे यह पता नहीं चलता कि उसने पुस्तक लिखकर कब समाप्त की। अमरीकन संस्करण के मुख-पृष्ठ के भीतर 'मई १९२७' दिया हुआ है। इसी महीने में पुस्ततक पहले पहल छपी। अक्टूबर १९२५ से मई १९२७ तक इन दोनों महीनों को छोड़ देने से १८ महीने से अधिक नहीं होते। हिन्दुस्तान के लिए रवाना होने की तारीख़ से पुस्तक छपने की तारीख़ तक का यही १८ महीने का समय मिस मेयो ने इस पुस्तक में लगाया। और हमको यह भी समझ लेना चाहिए कि इसी समय में उसने उत्तरी पश्चिमी सीमा प्रान्त से मद्रास तक दोड़ा किया, बहुत से शहरों और गांवों को देखा, भिन्न भिन्न जातियों के इतिहास और उनके सामाजिक औद्योगिक और राजनैतिक जीवन का अध्ययन किया। उसने घरों और अस्पतालों का निरीक्षण किया और जीवन के दार्शनिक तथा तात्विक विचारों पर खूब बातें की। अपने इस भारी काम में उसने ९ प्रान्तीय कौंसिलों की छपी हुई कार्रवाइयों, भारतीय व्यवस्थापन की दोनों सभाओं, 'नीली किताबों' और सब प्रान्तों के अनेकों सरकारी महकमों की जिनकी संख्या २० से भी अधिक होगी, रिपोर्टों को भी शामिल करने का प्रबन्ध किया। इसी सत्रह महीने के समय में उसका अमरीका वापस जाना, किताब लिखना और छपाना भी शामिल है। क्या किसी लेखक ने कभी अकेले हाथ इतने थोड़े समय में ऐसा चमत्कार दिखाया है?

कुछ लोगों को तो ये बातें पूरा विश्वास दिला देंगी कि मिस मेयो उन अधगोरे भारतीयों के, और सरकारी या ग़ैर सरकारी अफ़सरों की प्रेरणा से भारतवर्ष में आई जो उससे वैसी ही पुस्तक लिखाना चाहते थे जैसी उसने १९२४ में फिलीफाइन के सम्बन्ध में लिखी थी। पर जिन पाठकों को अब भी सन्देह हो उनके लिए यहाँ हम इतना और कहेंगे कि :—

१—ब्रिटिश द्वीपों में मिस मेयो के पुस्तक की पहले पहल 'टोरी दल' के प्रमुखों ने धूम मचाई। और यह वह दल है जो भारतवर्ष के अग्रगामी राजनैतिक दलों की स्वराज्य की मांग के विरुद्ध पहले से ही आन्दोलन करता रहा है।