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पश्चिम में कामोत्तेजना


अन्याय-पूर्ण प्रतिद्वन्द्विता में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है और प्रायः एक शर्म का जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ता है। इस प्रकार उन्हें अपना अस्तित्व भी भार-स्वरूप मालूम होने लगता है। इसे अतिशयोक्ति न समझिए। यह अत्यन्त सत्य है। कोई भी व्यक्ति—जिसकी हमारे बड़े शहरों के दूकान के जीवन से घनिष्ठता होगी—इसे सत्य स्वीकार करेगा।"

युवती कुमारियों को बड़े-बड़े जोखिम उठाने पड़ते हैं। और जो लोग सफेद गुलामों के व्यापार में लगे हैं उनके दुष्ट कृत्यों के कारण इन लड़कियों को नौकर रखनेवाले दूकानदारों पर भी बड़ा उत्तरदायित्व रहता है। इस बात को १९१३ ई॰ में ब्रिटिश-गवर्नमेंट को भी स्वीकार कर लेना पड़ा और टेलीफ़ोन पर काम करनेवाली कुमारियों को ऐसे व्यापारियों के ढङ्गों से सावधान करने के लिए एक असाधारण विज्ञप्ति प्रकाशित की गई। इस विज्ञप्ति के साथ निम्नलिखित पर्चा भी बांटा गया था। उसे हम यहाँ 'मास्टर प्राब्लेम'[१] नामक पुस्तक से सविस्तर उद्धृत करते हैं:—

कुमारियों को चेतावनी—

कुमारियों को सड़कों पर, दुकानों में, स्टेशनों पर, रेलगाड़ियों में, देहात के निर्जन मार्गों में या विनोद के स्थानों में अपरिचित व्यक्तियों से कदापि वार्तालाप नहीं करना चाहिए। चाहे वे पुरुष हो चाहे स्त्री।

कुमारियों को अपनी ड्यूटी पर नियुक्त सरकारी-कर्मचारी, जैसे पुलिस का सिपाही, रेल का कर्म्मचारी या चिट्ठीरसा, के अतिरिक्त और किसी से मार्ग नहीं पूछना चाहिए।

कुमारियों को सड़क पर अकेली नहीं फिरना चाहिए या खड़ी नहीं होना चाहिए। यदि कोई अपरिचित एकाएक आकर बात करने लगे—चाहे पुरुष हो चाहे स्त्री—तो उन्हें सबसे निकट के पुलिस के सिपाही के पास जितनी शीघ्र हो सके दौड़कर पहुँच जाना चाहिए।

यदि कोई स्त्री मूर्छित होकर किसी कुमारी के पास सड़क पर गिर पड़े तो उस कुमारी को उसकी सहायता स्वयं नहीं करनी चाहिए बल्कि तुरन्त पुलिस के सिपाही को उसकी सहायता के लिए बुलाना चाहिए।


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  1. पृष्ठ १६५-६६