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दुखी भारत

माता और पुत्र परस्पर सम्भोग करते हुए उपस्थित किये गये हैं। झुण्ड के झुण्ड ऐसे लोग हैं जिनमें मिस्टर कावर्ड के समान भी कलात्मक गुण नहीं है पर कुरुचि प्रचार में वे खूब सफल हो रहे हैं। अँगरेज़ी नाटक साहित्य के समालोचक श्रीयुत जेम्स अगेट अपनी गत वर्ष में प्रकाशित एक पुस्तक में लिखते हैं कि मिस्टर सोमर्स्ट मौघम जिन्हें 'नटखट-नाट्य' कहते हैं उनको लिखने की बुद्धि नहीं रखते। परन्तु उनकी 'अवर वेटर्स' नामक पुस्तक ने लोगों के लिए एक फैशन की उत्पत्ति कर दी है। आज-कल लन्दन के रङ्गमञ्च पर इन्हीं 'नटखट नाट्यों' का साम्राज्य है। परन्तु मिस्टर अगेट को यह विश्वास है कि यह केवल एक सामयिक फैशन है और अधिक काल तक नहीं टिकेगा। अच्छा हो यदि यह अधिक काल तक न टिके।

भारत-सरकार ने सिनेमा के सम्बन्ध में जाँच करने के लिए एक कमेटी बनाई है। क्योंकि वह अमरीका की फिल्मों के विरुद्ध ब्रिटिश फिल्मों को प्रोत्साहन देना चाहती है। अमरीका की फिल्मों के विरुद्ध जो बातें कही जाती हैं उनमें एक यह है कि वे अत्यन्त कामोत्तेजक होती हैं। इससे सरकार भारत के नव-युवकों को इनसे बचाना चाहती है। अमरीका के विरुद्ध इस भेद-नीति से भारतीय-मतैक्य नहीं है। क्योंकि भारत के पास वर्तमान स्थिति में ग्रेट ब्रिटेन या साम्राज्य का कृतज्ञ होने का कोई कारण नहीं है। 'युवकों के सदाचार की रक्षा करने की बात' सरकार का वहाना-मात्र है। सिनेमा के नियंत्रण की बात भी कोरी बात ही है। बनेर्ड -शा ने अपनी पुस्तक की एक भूमिका में इस बहाने का जो भण्डाफोड़ किया था, उसे कोई भूल नहीं सकता है। जान पड़ता है कि इस नियंत्रण ने केवल उन्हीं लेखकों की रचना पर बनी फिल्मों को जब्त किया है जिनका उद्देश्य 'पूर्णरूप से सदाचार का प्रचार करना रहा है। जैसे––शा, टाल्सटाय और इबसन। शा की 'मिसेज़ वारेन्स प्रोफेसन' की फिल्म ज़ब्त कर ली गई थी और वर्षों वह रङ्गमञ्च पर नहीं आ सकी। नाटक की भूमिका में शा ने बड़ी सफलता के साथ यह दर्शाया है कि मेरा नाटक प्रदर्शन की आज्ञा प्राप्त करने के लिए यथेष्ट अश्लील नहीं था।

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