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दुखी भारत

उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए केवल दो बातों की आवश्यकता थी; योग्यता और सदाचार की। मन्त्रियों के चुनने में या सेना अथवा प्रबन्ध-विभाग के लिए उच्च पदाधिकारियों के चुनने में वह हिन्दुओं का उतना ही ध्यान रखता था जितना मुसलमानों का। राज्य-कर से जो आय होती थी वह दूरस्थ दिल्ली के कोष में न भेजी जाकर वहीं व्यय की जाती थी।"

मिल मेयो ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की बड़ी प्रशंसा की है। परन्तु कम्पनी के शासन में बङ्गाल की क्या स्थिति थी? इसके सम्बन्ध में नीचे लार्ड मेकाले का वक्तव्य दिया जाता है[१]:––

"क्काइव के बङ्गाल से चले जाने के पश्चात् के पाँच वर्षों में वहाँ अँगरेज़ों का शासन बहुत बिगड़ गया था। वैसा बुरा शासन कभी भी किसी समाज के अनुकूल नहीं हो सकता। यहाँ वे रोमन वायसराय––जो एक या दो वर्ष में किसी प्रान्त को इतना चूस लेते थे कि कम्पेनिया के तट पर सङ्गमरमर के महल और स्नानागार बनाकर निवास करते थे, अम्बर की शराब पीते थे, गानेवाले पक्षियों का मांस खाते थे, तथा तलवार-वाहियों की सेना और जिराफों के समूह का प्रदर्शन करते थे; तथा स्पेन के वे वायसराय––जो मेक्सिको या लीमा-निवासियों के शाप को पीछे छोड़ सुनहली बग्घियों की लम्बी क़तार और चांदी से सजे टट्टुओं के साथ मैडरिड में प्रवेश करते थे––भात हो गये।......करीब करीब सम्पूर्ण भीतरी व्यापार का अधिकार कम्पनी के नौकरों ने केवल अपने लिए प्राप्त कर रखा था। वे बङ्गाल के निवासियों को महँगा खरीदने और सस्ता बेचने के लिए विवश करते थे। लत, पुलिस और माल के कर्मचारियों का बड़ा अपमान करते थे।......ब्रिटिश की दूकानों का प्रत्येक नौकर कम्पनी की पूरी शक्ति से सुसज्जित रहता था। इस प्रकार एक ओर तो कलकत्ता में शीघ्रता के साथ विपुल सम्पत्ति जोड़ी जा रही थी और दूसरी ओर ३ करोड़ मानव-प्राणी दरिद्रता की पराकाष्टा पर पहुँचा दिये गये थे।...... प्राचीन स्वामियों की पराधीनता में जब अत्याचार अलह्य हो उठता था तो प्रजा विद्रोह कर बैठती थी और राजा को खींचकर नीचे गिरा देती थी परन्तु अँगरेज़ी राज्य को उखाड़ना सरल था। वह शासन अत्यन्त निर्दय पाशविक एकाधिपत्य शासन-पद्धति की भाँति क्रूर था और सभ्यता की समस्त शक्ति को अपने साथ लेकर और भी सबल बना हुआ था।"


  1. मेकाले; क्लाइव के सम्बन्ध में एक निबन्ध।