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भारत के धन का अपव्यय

जिसका सभापति था, सर्व-सम्मति से सेना को भारतीय रूप दे देने की सिफ़ारिश की; यद्यपि यह भी राष्ट्रवादियों की सम्मति में अत्यन्त शिथिल चाल थी। परन्तु इन सिफ़ारिशों को भी अत्यन्त न्यून आदर प्रदान किया गया है।

ब्रिटेन, भारत के कच्चे माल
का ख़रीदार

भारतीय जीवन में यह एक साधारण बात है कि यहाँ के निवासी व्यवसाय में पिछड़े हुए हैं। भारतवर्ष का मुख्य व्यवसाय कृषि है। हम मिस्टर लप्टन की हैपी इंडिया नामक पुस्तक का उल्लेख कर चुके हैं। उसमें इस विषय की बड़ी विस्तृत विवेचना की गई है। मैंने अपनी 'इँगलेंड पर भारतवर्ष का ऋण' नामक पुस्तक में, ईस्ट इंडिया कम्पनी के आरम्भ-काल से लेकर उस पुस्तक के लिखे जाने के समय तक भूमि के सम्बन्ध में ब्रिटिश सरकार की जो नीति रही है उसके इतिहास का पता लगाया था। उसमें मैंने १९०३-४ ईसवी से लेकर १९१३-१४ ईसवी तक भारत का जो कच्चा माल इँगलेंड भेजा गया था उसके अङ्क दिये थे। भारतवर्ष से जो माल बाहर भेजा गया था उसका २३.४ प्रतिशत इँगलेंड में पहुँचा था। किसी अन्य देश को १० प्रतिशत से अधिक नहीं मिला। १९२४-२५ में ग्रेटब्रिटेन में २५.५ प्रतिशत भारत का माल पहुँचा था। ब्रिटेन के पश्चात् जापान का नम्बर था। जापान को १४.३ प्रतिशत प्राप्त हुआ था। १९१३-१४ में भारतवर्ष ने जो विदेशी माल ख़रीदा उसमें इँगलैंड का माल ६४.१ प्रतिशत था। १९२४-२५ में इँगलेंड ने भारत को ५४.३ प्रतिशत दिया। मैंने अपनी 'इँगलेंड पर भारतवर्ष का ऋण' नामक पुस्तक में दिये गये अङ्का से पैदावार की मुख्य वस्तुओं के विषय में निम्नलिखित परिणाम निकाले थे––

जूट––ग्रेटब्रिटेन भारतवर्ष से सब देशों से अधिक जूट ख़रीदता है।

ऊन––भारतवर्ष में जितना ऊन पैदा होता है, प्रायः वह सबका सब ग्रेटब्रिटेन चला जाता है। १९१२-१३ में भारतवर्ष ने कुल १७,५६,४४८ पौंड को लागत का ऊन बाहर भेजा था। उसमें से १७,०४,७८५ पौंड की लागत का उन ग्रेट ब्रिटेन ने लिया।

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